हिंदी साहित्य का इतिहास । पद्य एवम गद्य साहित्य का इतिहास । पद्य साहित्य का इतिहास एवम प्रवृतियां । गद्य साहित्य का इतिहास एवम प्रवृतियां। वीरगाथा काल , भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल। भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, रहस्यवाद , प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, नई कविता। छायावाद एवम रहस्यवाद में अंतर ।भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का "स्वर्णयुग" क्यों कहा जाता है? रीतिकाल को हिंदी साहित्य का "श्रृंगार काल" क्यों कहा जाता है?

हिंदी साहित्य का इतिहास। (Hindi sahitya ka itihas)


पद्य साहित्य का इतिहास एवम प्रवृतियां | (Padya sahitya ka itihas evm pravrittiyan)
गद्य साहित्य का इतिहास एवम प्रवृतियां | (Gadya sahitya ka itihas evm pravrittiyan)

आज इस पोस्ट में हम हिंदी साहित्य के इतिहास को  विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।

इस पोस्ट में हम हिंदी साहित्य के इतिहास के अंतर्गत पद्य साहित्य का इतिहास एवम उसकी प्रवृतियां तथा गद्य साहित्य का इतिहास एवम उसकी प्रवृतियां को पढ़ेंगे।

पद्य साहित्य के इतिहास के अंतर्गत हम आदिकाल, भक्तिकाल , रीतिकाल एवम आधुनिक काल पढ़ेंगे जिसमे हम इन सभी कालों की विशेषताएं एवम उनके प्रमुख कवि व उनकी प्रमुख रचनाये भी देखेंगे।

आगे हम आधुनिक काल का विभाजन पढ़ेंगे जिसमे भारतेंदु युग , द्विवेदी युग , छायावादी युग, रहस्यवादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, एवम नई कविता इन सब की समय सीमा के साथ साथ इनकी सभी युगों की विशेषतायें एवम उनके प्रमुख कवि व उनकी प्रमुख रचनाये भी जानेंगे।

इस पोस्ट में आप उन सभी प्रश्नों को भी देखेंगे जो अक्सर बोर्ड परीक्षाओं में पूंछ लिए जाते है जैसे:-

छायावाद एवम रहस्यवाद में अंतर , भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है। ,रीतिकाल को हिंदी साहित्य का श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है । , आदिकाल की विशेषताएं लिखिए आदि।

हमारे इस ब्लॉग पर आपको ऐसी ही knowledgable पोस्ट (लेख) मिलते रहेंगे तो आप हमसे जुड़ सकते है, या तो हमें follow करके या नोटिफिकेशन बटन चालू करके जिसमें आपको हमारी नई पोस्ट का नोटिफिकेशन सबसे पहले मिले।

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परिभाषा - 

अतीत के तथ्यों का वर्णन कालक्रम के अनुसार इतिहास कहलाता है ।


 हिंदी साहित्य के इतिहास को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने चार भागों में बांटा है -


● आदिकाल या वीरगाथा काल - संवत 1050 से 1375 तक । 
● पूर्व मध्यकाल या भक्ति काल - संवत 1375 से 1700 तक । 
● उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल - संवत 1700 से 1900 तक । 
● आधुनिक काल या वर्तमान काल - संवत 1900 से आज तक


◽️🔺◾️ वीरगाथा काल या आदिकाल

 ● आरंभिक काल होने के कारण इसे आदि काल कहा गया ।

● वीरता  (वीर रस) से भरी रचनाओं के कारण इसे वीरगाथा काल कहा गया।

● चारणों द्वारा लिखित ग्रंथों के कारण इसे चारण काल कहा गया।


 🔳 वीरगाथा काल की विशेषताएं :- 🔳

• युद्ध का सजीव चित्रण ।

• आश्रय दाताओं की प्रशंसा | 

• रासो काव्य परंपरा की प्रधानता ।

• श्रंगार व वीर रसों का प्रयोग |

• अपभ्रंश, डिंगल एवम पिंगल भाषाओं का प्रयोग।

• इतिहास की अपेक्षा कल्पना की प्रधानता।

• राजाओं की वीरता का अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन।


 ✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. चंदबरदाई - पृथ्वीराज रासो ,

 2. नरपति - बीसलदेव रासो , 

3. जगनिक - परमाल रासो (आल्हा खंड)

4.  शारंगधर -  हम्मीर रासो ,

5. नल्प सिंह - विजय पाल रासौ,

6. दलपत विजय - खुमान रासौ।




◽️🔺◾️भक्ति काल

 ● समाज से राजनीतिक , सांस्कृतिक , सामाजिक , धार्मिक संकट नष्ट करने के लिए भक्तिकाल का उदय हुआ । इसे स्वर्ण युग भी कहा गया है ।

● भक्ति विषयक रचनाओं की प्रधानता के कारण इसे भक्तिकाल कहा गया।

● हिंदी साहित्य का मध्यवर्ती युग होने के कारण इसे पूर्व मध्यकाल कहा गया।


 भक्तिकाल को आचार्य राम चन्द्र शुक्ल ने दो भागों में बांटा है- 

 1. निगुर्ण भक्ति धारा एवम
2. सगुण भक्ति धारा।


पुनः निगुर्ण भक्ति धारा  को दो भागों में बांटा गया है- 

 i) ज्ञानाश्रयी या ज्ञानमार्गी शाखा
ii)  प्रेमाश्रयी या प्रेममार्गी शाखा


 i) ज्ञानाश्रयी या ज्ञानमार्गी शाखा


 🔳  विशेषताएं :- 🔳


 • निराकार ब्रह्म की उपासना ।

• साधना एवम ज्ञान पर बल।

• ज्ञान के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति।

• बाह्य आडम्बरों, कर्मकांडो , एवम धार्मिक पाखण्डों का विरोध।

• समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग | 

• गुरु को महत्व।


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. कबीर दास - बीजक , 

2. सुन्दरदास - सुंदर विलास

3. रैदास - रैदास के पद

4. दादूदयाल - साखी, पद


ii)  प्रेमाश्रयी या प्रेममार्गी शाखा


 🔳  विशेषताएं :- 🔳

 • निराकार ब्रह्म की उपासना ।

• प्रेम के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति।

• काव्य शैली के लिए फ़ारसी की मशनवी शैली का प्रयोग।

• समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग | 

• गुरु को महत्व।


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. मलिक मोहम्मद जायसी - पद्मावत,

2. कुतुवन - मृगावती,

3. मंझन - मधुमालनी,

4. उस्मान - चित्रावली।


पुनः सगुण भक्ति धारा  को दो भागों में बांटा गया है- 

 

 i) कृष्णभक्ति शाखा
 ii) रामभक्ति शाखा


 i) कृष्णभक्ति शाखा


 🔳  विशेषताएं :- 🔳


 • साकार ब्रह्म की उपासना ।

• वात्सल्य एवम श्रृंगार रस की प्रधानता।

• सखा भाव की भक्ति।

• समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग | 

• गुरु को महत्व।

• कृष्ण की बाल - लीलाओं का लोकरंजक वर्णन।


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. सूरदास - सूर सागर
2. कृष्णदास - भ्रमरगीत
3. रसखान - प्रेम वाटिका
4. रहीमदास - दोहावली।



 ii) रामभक्ति शाखा


 🔳  विशेषताएं :- 🔳


 • साकार ब्रह्म की उपासना ।
• दास भाव की भक्ति।
• ब्रज और अवधि भाषा का प्रयोग।
• मुक्तक एवम प्रबन्ध काव्यों की रचना।
• राम की बाल - लीलाओं का लोकरंजक वर्णन।
.• समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग | 
• गुरु को महत्व।


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️


1.  गोस्वामी तुलसीदास - रामचरितमानस , 
2. गोस्वामी अग्रदास - रामध्यान मंजरी,
3. नाभादास - भक्तभाल,
4. रघुराज सिंह - रामस्वयमवर।

 🔳 भक्तिकाल की विशेषताएं :- 🔳

 • साकार एवं निराकार ब्रह्म की उपासना ।

 • रहस्यवादी कविता व आध्यात्मिकता की प्रेरणा | 

 • लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना । • 

.• समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग | 

• भक्ति विषयक रचनाओं की प्रधानता

•वात्सल्य रस की प्रधानता

• ब्रज , अवधि एवम सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग

• जन सामान्य की भाषा का प्रयोग।

• गुरु को महत्व।

✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. तुलसीदास - रामचरितमानस , 

2. सूरदास - भ्रमरगीत सार , 

3. कबीर दास - बीजक , 

4. मलिक मोहम्मद जायसी - पद्मावत ।


प्रश्न :- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? 

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहलाता है क्योंकि हिन्दी साहित्य की जितनी समृद्धि इस युग में देखने को मिलती है , कदाचित अन्य में नहीं मिलती । सूर , तुलसी , मीरा , जायसी , कबीरा जैसे साहित्यकार हिन्दी साहित्य में आज तक पैदा नही हो सके । यदि इन कवियों का साहित्य नही होता तो कदाचित हिन्दी अकिंचन  ही रह जाती । इसी कारण भक्तिकाल को  हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है

◽️🔺◾️ रीतिकाल

●  रीतिकाव्य - वह काव्य जो लक्षण के आधार पर ध्यान में रखकर रचा जाता है । 

● रीति का अर्थ होता है योजना या काव्य शास्त्रीय लक्षण। चूंकि रीतिकाल की सभी रचनाये काव्य शास्त्रीय लक्षणों के उदाहरण स्वरूप रची गयी है इसीलिए इस काल का नाम रीतिकाल पड़ा।

रीति काल विभाजन 

रीतिबद्ध काव्य 

रीतिमुक्तं काव्य 

रीतिसिद्ध काव्य


 🔳 रीतिकाल की विशेषताएं :- 🔳


 • सांसारिक सुख की प्रधानता । 

 • कवियों का राज्य आश्रित होना ।

 •  मुक्तक और गीतिकाव्य की प्रधानता ।

  •  ब्रज भाषा में काव्य रचना ।

 • वीर और श्रृंगार रस की प्रधानता ।

 •  लक्षण ग्रंथों की प्रधानता।

 • राजाओं का मनोविनोद करना।

 • इस काल के सभी कवि पहले आचार्य बाद में कवि हुए।


 ✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. केशवदास - कवि प्रिया ,

2.  सेनापति- काव्य कल्पद्रुम ,

3. भूषण- शिवराज भूषण , 

4. बिहारी - बिहारी सतसई (सतसैया)

5. घनानंद - सुजान सागर ,

6. मतिराम - मतिराम सतसई (सतसैया) ।


प्रश्न :- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है । 


 रीतिकाल को अनेक नामों से जाना जाता है । मिश्रबंधु ने इसे अलंकृत काल कहा । आचार्य भवानी प्रसाद मिश्र ने इसे  श्रृंगार काल कहा | इस युग में उस समय की सभी रचनाओं का संयोग है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस युग की व्यापकता एवं सामर्थता को स्वीकार करते हुए कहा कि वास्तव में वीर रस एवं श्रृंगार रस की अधिक रचनाएं लिखी गई है , लेकिन श्रृंगार रस की अधिकता के कारण इसे श्रृंगार काल कह सकते हैं ।

◽️🔺◾️ आधुनिक काल

 ● आधुनिक हिंदी कविता का प्रारंभ माना जाता है । इस काल में धर्म , दर्शन , कला एवं साहित्य के प्रति नए दृष्टिकोण का आविर्भाव हुआ ।

● पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से हिंदी काव्य में नवीनता का समावेश हुआ , अतः इसे आधुनिक मानकर इसे आधुनिक काल कहा गया।

● गद्य काव्य के अधिक प्रयोग होने के कारण इसे गद्य काल कहा गया।

 विभाजन - - 

1. भारतेंदु युग - सन 1850 से 1900 तक
 2. द्विवेदी युग - सन 1900 से 1920 तक
3. छायावादी युग - सन 1920 से 1936 तक
● रहस्यवादी युग - ( छायावाद ओर प्रगतिवाद के बीच का काल)
4. प्रगतिवादी युग - सन 1936 से 1943 तक
5. प्रयोगवादी युग - सन 1943 से 1950 तक
 6. नई कविता - सन 1950 से आज तक

MOTIVATIONAL THOUGHTS

◽️🔺◾️ भारतेंदु युग

● हिंदी साहित्य का प्रवेशद्वार युग । 

● भारतेंदु हरिश्चंद्र की महान साहित्यिक सेवा के कारण इसे भारतेन्दु युग कहा जाता है।


 🔳 भारतेंदु युग की विशेषताएं :- 🔳

• राष्ट्रीयता की भावना , 

• सामाजिक चेतना का विकास । 

• अंधविश्वास एवं अंग्रेज़ी शिक्षा का विरोध । 

• विभिन्न काव्य रूपों का प्रयोग । 

• मुक्तक एवम प्रबंध काव्यों की रचना।

• हास्य व्यंग्य शैली का प्रयोग।

• ब्रज भाषा का प्रयोग | 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. भारतेंदु हरिश्चंद्र - प्रेम सरोवर , 

2. बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन - जीर्ण जनपद , 

3. प्रताप नारायण मिश्र - प्रेम पुष्पा वली , 

4. राधाचरण गोस्वामी - नव भक्तमाल ,

5. जगमोहन सिंह - प्रेम संपत्ति।



◽️🔺◾️ द्विवेदी युग 

● यह युग कविता में खड़ी बोली के प्रतिष्ठित होने का युग है जिसके प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं । 

● द्विवेदी जी की गरिमा को स्थायी बनाने के लिए इस युग का नाम द्विवेदी युग रखा गया।

● सरस्वती पत्रिका के सम्पादन से इस युग का प्रारंभ हुआ।


 🔳 द्विवेदी युग की विशेषताएं :- 🔳

• देशभक्ति को व्यापक आधार मिला

 • अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों का विरोध 

• वर्णन प्रधान कविताएं 

• मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना

 • प्रकृति चित्रण 

• खड़ी बोली का परिनिष्ठित रूप । 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - प्रियप्रवास , 

2. मैथिलीशरण गुप्त - पंचवटी ,

3. रामनरेश त्रिपाठी - मिलन , 

4. माखनलाल चतुर्वेदी - हिमकिरीटिनी , 

5. महावीर प्रसाद द्विवेदी - काव्य मंजूषा ।


◽️🔺◾️ छायावाद 

● प्रकृति पर चेतना के आरोप को छायावाद कहा गया है ।

● डॉ नगेंद्र के अनुसार “ स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोह ” को छायावाद कहा गया है । 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रस्तुत में अप्रस्तुत के कथन को छायावाद कहा।


 🔳 छायावाद की विशेषताएं :- 🔳

• स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह

• छायावाद में व्यक्ति वाद की प्रधानता है

• छायावादी है काव्य मुख्यतया श्रृंगारी काव्य है 

• प्रकृति का मानवीकरण किया गया है

• सौंदर्यानुभूति

• यथार्थ की अपेक्षा कल्पना की प्रधानता

• वेदना एवं करुणा का आधिक्य

• अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम 

• नारी के प्रति नवीन भावना 

• जीवन दर्शन तथा अभिव्यंजना शैली | 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. जयशंकर प्रसाद - कामायनी , 

2. सुमित्रानंदन पंत - पल्लव , 

3. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - परिमल ,

4. महादेवी वर्मा - नीहार ।


◽️🔺◾️ रहस्यवाद

●  कण - कण में परमात्मा के होने का आभास रहस्यवाद है । 

●  मुकुटधर पांडे के अनुसार “ प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद है । " 

● आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार "चिंतन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है , भावना के क्षेत्र में वही राहस्यवाद है।"


 🔳 रहस्यवाद की विशेषताएं :- 🔳

• आलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम 

• परमात्मा से विरह मिलन का भाव 

• जिज्ञासा की भावना

• चिंतन की प्रधानता

• आध्यात्मिकता का भाव

 • प्रतीकों का प्रयोग | 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. कबीर दास - बीजक , 

2. मलिक मोहम्मद जायसी पद्मावत , 

3. मीराबाई पदावली , 

4. जयशंकर प्रसाद कामायनी 

5. महादेवी वर्मा - सांध्य गीत ,

6. डॉ. रामकुमार वर्मा - अंजलि।




छायावाद और रहस्यवाद में अंतर

● छायावाद में कल्पना की प्रधानता है किंतु रहस्यवाद में चिंतन की प्रधानता है । . 

● छायावाद में भावना की प्रधानता है किंतु रहस्यवाद में ज्ञान व बुद्धि तत्व की प्रधानता है । 

● छायावाद प्रकृति मूलक है किंतु रहस्यवाद की प्रकृति दार्शनिक है ।


◽️🔺◾️ उत्तर छायावाद 

 ● इस काल में प्रेम और रोमांस की एक कविता धारा चली थी जिसमें हरिवंश राय बच्चन , गोपाल सिंह नेपाली , रामेश्वर शुक्ल ' अंचल ' , हरि कृष्ण प्रेमी आदि मुख्य हैं । . 


इसमें एक सीमित क्षेत्र में अनुभूतियां व्यक्त की गई हैं । इस तरह की प्रवृत्ति ज्यादा नहीं चली । इन कवियों के काव्य में श्रृंगार यौवन तथा प्रकृति का चित्रण मिलता है व छायावाद के लक्षण दिखाई देते हैं ।


◽️🔺◾️ प्रगतिवाद 

● छायावादी काव्य के अस्पष्ट सौन्दर्य बोध सूक्ष्मता और बहिख्याता कि प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदी में एक नई काव्य प्रवृति ने जन्म ले लिया जिसे प्रगतिवाद कहा गया।

● प्रगतिवादी काव्य में समाजवादी विचारधारा का साम्यवादी स्वर महत्वपूर्ण है ।

● राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है । 


 🔳 प्रगतिवाद की विशेषताएं :- 🔳

• शोषकों के प्रति विद्रोह और शोषितों के प्रति सहानुभूति 

• आर्थिक व सामाजिक समानता पर बल 

• ईश्वर के प्रति अनास्था 

• प्रतीकों का प्रयोग

• मार्क्सवादी विचार धारा का प्रभाव

• भावुकता की वजाय बौद्धिकता की प्रधानता।

 • भाग्य वाद की अपेक्षा कर्म वाद की श्रेष्ठता । 


 ✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

 1. नागार्जुन - युगधारा , 

2. शिवमंगल सिंह सुमन - हिल्लोल , 

3. त्रिलोचन - में उस जनपद का कवि हूं , 

4. सुमित्रानंदन पंत - युगवाणी , 

5. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - कुकुरमुत्ता ।


◽️🔺◾️ प्रयोगवाद 

● इस वाद का प्रारंभ अज्ञेय के तार सप्तक से माना जाता है । 

● जीवन और जगत के प्रति अनास्था प्रयोगवाद का आवश्यक तत्व है । अहम का विसर्जन तथा साहित्य का सामाजिकरण इसका महत्वपूर्ण लक्ष्य था । . 

➰ पहला तारसप्तक - 1943
➰ दूसरा तारसप्तक - 1951
➰ तीसरा तारसप्तक - 1953

 🔳 प्रयोगवाद की विशेषताएं :- 🔳

• नवीन उपमानो का प्रयोग

 • प्रेम भावनाओं का खुला चित्रण

 • बुद्धिवाद , निराशा वाद , लघु मानववाद व अहम की प्रधानता 

• व्यंग से रूढ़ियों के प्रति विद्रोह

• गहरी और सजग पीड़ा का बोध

• इस युग की कविताएं हृदय की न होकर मस्तिष्क की देन है , इसीलिए वे नीरस है।

 • मुक्त छंदों का प्रयोग । 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. अज्ञेय* - हरी घास पर क्षण भर , 

2. मुक्तिबोध* - चांद का मुँह टेढ़ा है , 

3. धर्मवीर भारती - अंधा युग , 

4. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - बांस के पुल , 

5. नरेश मेहता - संशय की एक रात , 

6. गिरिजाकुमार माथुर - धूप के धान ।

(अज्ञेय - सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
मुक्तिबोध - गजानन माधव मुक्ति बोध)

◽️🔺◾️ नई कविता 


● प्रयोगवादी कविता का ही आगे का दौर नई कविता के रूप में उभरा है । नई कविता परिस्थितियों की उपज है नई कविता स्वतंत्रता के बाद लिखी गई वह कविता है जिसमें नवीन भाव बोध , नए मूल्य तथा नया शिल्प विधान है । 


 🔳 नई कविता की विशेषताएं :- 🔳

 •  लघु मानववाद की प्रतिष्ठा

 •  प्रायोगों में नवीनता 

 •  क्षणवाद को महत्व

 •  अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण 

 •  कुंठा संत्रास मृत्यु बोध 

 •  नवीन बिंबों की खोज तथा व्यंग प्रधान रचनाएं 


✴️ प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं :- ✴️

1. भवानी प्रसाद मिश्र - सन्नाटा , 

2. कुंवर नारायण - चक्रव्यूह , 

3. दुष्यंत कुमार - सूर्य का स्वागत , 

4. रघुवीर सहाय - हंसो हंसो जल्दी हंसों ,

5. नरेश मेहता - वनपाखी सुनो ,

6. गिरिजा कुमार माथुर - शिलापंख चमकीले।

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आज हमने इस पोस्ट में हिंदी साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास को उनके काल क्रम विभाजन , उनकी विशेषताओ , प्रमुख कवि व रचनाओं को बहुत ही सरल भाषा में जाना।

उम्मीद करता हूँ कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।

यदि आप हिंदी साहित्य के इतिहास से जुड़े कोई प्रश्न पूंछना या हमे कोई सुझाव देना चाहते है तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमे अपना सुझाव जरूर दे।

धन्यवाद।


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