गद्य साहित्य की विधाएं । गद्य साहित्य की मुख्य एवम गौण विधाएं। गद्य साहित्य का इतिहास एवम प्रवृतियां । नाटक, कहानी, एकांकी, उपन्यास, निबन्ध, आलोचना, आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, रेखाचित्र आदि।
गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं । {Gadya Sahitya ki pramukh vishayon.|
गद्य साहित्य का इतिहास एवम उसकी प्रवृतियां। (Gadya sahitya ka itihas evam uski pravrittiyan.)
आज इस पोस्ट में हम हिंदी गद्य साहित्य के इतिहास एवम उसकी विधाएं विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
इस पोस्ट में हम हिंदी साहित्य के इतिहास के अंतर्गत पद्य साहित्य का इतिहास एवम उसकी प्रवृतियां तथा गद्य साहित्य का इतिहास एवम उसकी प्रवृतियां को पढ़ेंगे।
गद्य साहित्य की प्रमुख विधाओं के अंतर्गत हम नाटक, एकांकी , कहानी, उपन्यास, निबंध एवम आलोचना या समीक्षा पढ़ेंगे जिसमे हम इन सभी विधाओं का काल क्रम विभाजन एवम उनके प्रमुख कवि व उनकी प्रमुख रचनाये भी देखेंगे।
आगे हम गद्य साहित्य की गौण विधाओं को पढ़ेंगे जिसमे आत्मकथा , जीवनी, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा साहित्य, रिपोर्ताज, पत्र साहित्य, डायरी, भेंटवार्ता एवम गद्य काव्य इन सभी के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे एवम उनके प्रमुख कवि व उनकी प्रमुख रचनाये भी जानेंगे।
इस पोस्ट में आप उन सभी प्रश्नों को भी देखेंगे जो अक्सर बोर्ड परीक्षाओं में पूंछ लिए जाते है जैसे:-
नाटक एवम कहानी में अंतर, उपन्यास एवम कहानी में अंतर, नाटक एवम एकांकी में अंतर, आत्मकथा एवम जीवनी में अंतर, संस्मरण एवम रेखाचित्र में अंतर, नाटक, एकांकी, उपन्यास, एवम कहानी के तत्व आदि।
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आधुनिक युग गद्य साहित्य के विकास का युग है जिसमें हमारी चेस्टाएं , हमारे मनोभाव , हमारी कल्पनाएं और हमारी चिंतनशील मन : स्थितियां सुगमता पूर्वक व्यक्त की जा सकती हैं । यही कारण है कि आज गद्य साहित्य सशक्त अभिव्यक्ति के द्वारा विविध विधाओं के माध्यम से अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त करता जा रहा है ।
गद्य विकास का विभाजन
भारतेंदु युग से पूर्व हिंदी गद्य के विकास को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. प्रारंभिक काल -
ब्रजभाषा के गद्य का प्रारंभिक रूप जैन ग्रंथों में मिलता है ।
2. विकास काल -
खड़ी बोली के प्रयोग के साथ ही गद्य का विकास काल देखने को मिलता है ।
गद्य की प्रमुख विधाएं
आधुनिक काल में खड़ी बोली में जो रचनाएं हुई उन का सूत्रपात 19 वीं सदी के प्रारंभ से होता है । साहित्य के क्षेत्र में भारतेंदु हरिश्चंद्र का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है । इनकी सबसे बड़ी देन है हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान है करना । भारतेंदु के बाद हिंदी गद्य को सुव्यवस्थित और व्याकरण सम्मत बनाने में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का विशेष योगदान है । उन्होंने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से भारतेंदु के कार्य को आगे बढ़ाया ।
हिंदी की गद्य विधाओं को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है।➡️ प्रमुख विधाएं :-
➡️ गौण विधाएं :-
गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं :-
I. नाटक
नाटक एक ऐसी अभिनय परक विधा है जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहल पूर्ण वर्णन होता है । यह एक दृश्य काव्य है इसका आनंद अभिनय देख कर लिया जाता है ।
नाटक के तत्व
1. कथावस्तु
2. पात्र का चरित्र चित्रण
3. वातावरण या देश काल
4. संवाद या कथोपकथन
5.भाषा शैली
6. उद्देश्य
7. अभिनेयता
नाटक का काल विभाजन
1. भारतेंदु काल - 1837 से 1904 ईसवी तक
2. संधि काल- 1904 से 1915 ईसवी तक
इस युग में भारतेंदु काल की धाराएं भी बहती रही और नवीन धाराओं का उदय भी हुआ । बंगाली , अंग्रेजी , संस्कृत , नाटकों के हिन्दी अनुवाद भी हुए |
इस युग के प्रमुख नाटककार बद्रीनाथ भट्ट तथा जयशंकर प्रसाद है ।
3. प्रसाद युग- 1915 से 1933 तक
इसे हिंदी नाटक साहित्य का विकास युग कहा जाता है । प्रसाद युग के नाटकों में समकालीन परिवेश का चित्रण किया गया है । प्रसाद का हिन्दी साहित्य को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है । उनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक हैं तथा नाट्यविधान सर्वथा नूतन है।
नाटककार इस युग के प्रमुख दुर्गादत्त पाण्डे , वियोगी हरि, मिश्र बंधु , सुदर्शन आदि है ।
4. वर्तमान युग- 1933 से आज तक
इसे प्रसादोत्तर युग भी कहते हैं । इस युग में समस्याओं से संबंधित नाटक लिखे गए हैं । नए एवं पुराने जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करते हुए जीवन में विश्वास एवं आस्था बनाए रखने वाले नाटकों का भी सृजन किया गया ।
इस युग के प्रमुख नाटक कार सेठ गोविंद दास , हरिकृष्ण प्रेमी आदि है ।
संकलन त्रय
नाटक में प्रस्तावित स्थल , काल और कार्य की अन्विति ही संकलन त्रय कहलाती है । यह परम आवश्यक तत्व है।
नाटक में संवाद या कथोपकथन का महत्व -
संवाद नाटक का प्राण है नाटक में कथावस्तु को संवाद शैली में ही प्रस्तुत किया जाता है इस के तीन भेद होते हैं
1. सर्व श्राव्य
2. नियतश्राव्य -
3. अश्राव्य ।
हिंदी में नाटक सम्राट के नाम से जयशंकर प्रसाद को प्रसिद्धि मिली है ।
प्रमुख नाटककार और उनके नाटक
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र - वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ।
2.जयशंकर प्रसाद - चंद्रगुप्त , ध्रुवस्वामिनी ।
3. जगदीश चंद्र माथुर - कोणार्क ।
4. उदय शंकर भट्ट - मुक्ति पथ
नाटक की विशेषताएँ लिखिए :-
प्रश्न - नाटक को दृश्य काव्य क्यों कहा जाता है।
2. एकांकी
एकांकी के एक अंक का दृश्य काव्य है जिसमें एक कथा तथा एक उद्देश्य को कुछ पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है ।
डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार- “ एकांकी में एक ऐसी घटना रहती है , जिसका जिज्ञासा पूर्ण एवं कोतुहलमय नाटकीय शैली में चरम विकास होकर अंत होता है । "
डॉ . नगेन्द्र के अनुसार - "एकांकी में हमें जीवन का कृमबद्ध विवेचन न मिलकर उसके एक पहलू की एक महत्वपूर्ण एक विशेष परिस्थिति , एक उद्दीप्त छड़ का चित्रण मिलेगा ।"
एकांकी का प्राण तत्व है ' संघर्ष ' । संघर्ष से ही नाटकीयता का सृजन होता है ।
एकांकी के तत्व
1. कथावस्तु
2. पात्र का चरित्र चित्रण
3. वातावरण या देश काल
4. संवाद या कथोपकथन
5.भाषा शैली
6. उद्देश्य
7. अभिनेयता
एकांकी का विकास
1. भारतेंदु युग - द्विवेदी युग- 1875-1928 ई .
इस युग के एकांकी कारों ने प्रचलित परंपराओं , कुप्रथाओं और सामाजिक समस्याओं को आधार बनाकर एकांकी लिखें ।
2. प्रसाद युग- 1929-1937 ई.
इस युग में पाश्चात्य शैली का अनुकरण किया गया । समाज की तत्कालीन अवस्था का चित्रण इस युग की एकांकी यों में मिलता है ।
3. प्रसादोत्तर युग- 1938-1947 ई.-
इस समय एकांकी अपने यथार्थ रूप में सामने आया । युद्ध की विभीषिका तथा बंगाल के अकाल ने एकांकी कारों को झकझोर दिया था । -
4. स्वातंत्र्योत्तर युग- 1948 से अब तक
इस युग के एकांकीकारों का दृष्टिकोण प्रगतिवादी था । पूंजीवाद के विरोध के स्वर मुखर होने लगे थे । इस काल में एकांकियों को राजकीय प्रोत्साहन मिला ।
प्रमुख एकांकीकार और उनके एकांकी
1. राधाचरण गोस्वामी - भारत माता ।
2. डॉ जयशंकर प्रसाद - एक घूंट ।
3. रामकुमार वर्मा - पृथ्वीराज की आंखें ।
4. धर्मवीर भारती - नदी प्यासी थी ।
5. सेठ गोविन्ददास - पंचभूत।
6. उदयशंकर भट्ट - नए मेहमान।
7. जगदीश चंद्र माथुर - रीढ़ की हड्डी।
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नाटक और एकांकी में अंतर
1. नाटक का आकार बड़ा होता है जबकि एकांकी का आकार छोटा होता है ।
2. नाटक में पात्रों की संख्या अधिक होती है जबकि एकांकी में पात्रों की संख्या कम होती है ।
3. नाटक अनेक अंक वाली रंगमंच की विधा है जबकि एकांकी एक अंक वाली विधा है ।
4. नाटक में संवाद की व्यापकता होती है जबकि एकांकी में संवाद संक्षिप्त होते हैं ।
5. प्रसाद कृत ' चंद्रगुप्त ' एक नाटक है जबकि प्रसाद कृत ' एक घूंट ' एकांकी है ।
3. उपन्यास
उपन्यास शब्द ' उप ' उपसर्ग और न्यास पद के योग से बना है । जिसका अर्थ है उप = समीप , न्यास रखना या स्थापित रखना ( निकट रखी हुई वस्तु ) अर्थात वह वस्तु या कृति जिस को पढ़कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है , उसी के जीवन की कथा , उसी की भाषा में कही गई बात है । उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है ।
प्रेमचंद के अनुसार- “ मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूं । मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है ।
" डॉ भागीरथ मिश्र के अनुसार - “ युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण झांकी प्रस्तुत करने वाला गद्य उपन्यास कहलाता है । "
उपन्यास मानव जीवन का समग्र चित्रण है ।
उपन्यास के तत्व
1. कथावस्तु
2. पात्र का चरित्र चित्रण
3. वातावरण या देश काल
4. संवाद या कथोपकथन
5.भाषा शैली
6. उद्देश्य
उपन्यास का विकास
1. प्रथम अवस्था - 1850 से 1900 तक
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने श्रीनिवास दास कृत परीक्षा गुरु को हिंदी का प्रथम उपन्यास माना है । इस काल में कई उपन्यासों का अनुवाद भी हुआ ।
2. द्वितीय अवस्था - 1900 से 1915 तक
इस युग में मौलिक उपन्यास लिखने वालों में देवकीनंदन खत्री का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
3. तृतीय अवस्था -1915 से 1936 तक
इस युग में उच्च कोटि के उपन्यासों की रचना हुई । प्रेमचंद इस युग के अग्रदूत तथा उपन्यास सम्राट थे । उन्होंने आदर्श और यथार्थ का सुंदर सम्मिश्रण किया ।
4. चतुर्थ अवस्था -1936 से अब तक
इस युग में मार्क्स के भौतिकवाद तथा फ्रायड के मनोविश्लेषण का विशेष प्रभाव पड़ा । इस युग के उपन्यासों में प्रगति वादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित है ।
शैली की दृष्टि से उपन्यास के भेद
1. आत्मकथात्मक शैली
2. कथात्मक शैली
3. पत्र शैली
4. डायरी शैली ।
प्रमुख उपन्यासकार और उनके उपन्यास
1. मुंशी प्रेमचंद - गबन गोदान
2. जयशंकर प्रसाद - कंकाल
3. फणीश्वरनाथ रेणु - मैला आंगन
4. देवकीनंदन खत्री - चन्द्रकान्ता , भूतनाथ ।
4. कहानी
प्रेमचंद के अनुसार - ' कहानी एक ऐसी रचना है , जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही कहानीकार का उद्देश्य होता है ।
कहानी वास्तविक जीवन की ऐसी काल्पनिक कथा है जो छोटी होते हुए भी स्वत : पूर्ण और सुसंगठित होती है ।
कहानी के तत्व
1. कथावस्तु
2. पात्र का चरित्र चित्रण
3. वातावरण या देश काल
4. संवाद या कथोपकथन
5.भाषा शैली
6. उद्देश्य
कहानी के भेद :-
1. घटना प्रधान कहानी
2.चरित्र प्रधान कहानी
3.वातावरण प्रधान कहानी
4.भाव प्रधान कहानी
1. घटना प्रधान कहानी :-
इसमें क्रमश : अनेक घटनाओं को एक सूत्र में पिरोते हुए कथानक का विकास किया जाता है ।
2. चरित्र प्रधान कहानी :-
इसमें लेखक का ध्यान पात्रों के चरित्र निरुपण की और ही अधिक रहता है । इसमें मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि में चरित्र की विभिन्न सूक्ष्मताओं का उद्घाटन लेखक या पात्र स्वयं करता है ।
3. वातावरण प्रधान कहानी : -
इन कहानियों में वातावरण पर अधिक ध्यान दिया जाता है
विशेषता : ऐतिहासिक कहानियों में वातावरण को विशेषरूप से चित्रित किया जाता है ।
4. भाव प्रधान कहानी : -
इन कहानियों में एक भाव या विचार के आधार पर कथानक का विकास किया जाता है ।
📶 कहानी की विशेषताएं :-
1. सरस , सरल एवं पात्र अनुकूल शैली |
2. पात्रों का यथार्थ एवं प्रभावो- त्पादक चित्रण |
3. संक्षिप्तता
4. मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी |
5. श्रेष्ठ कहानी की कथावस्त मौलिक होती है ।
6. इसके संवाद पात्रानुकूल और प्रसंगानुकूल होते हैं ।
7. इसकी भाषा शैली प्रभावशाली होती है ।
8. कहानी में एक घटना का चित्रण होता है । कहानी में संक्षिप्तता होती है
कहानी का विकास
1. प्रेमचंद पूर्व की कहानी - 1910 से पूर्व
हिंदी की सर्वप्रथम कहानी का आविर्भाव काल सन 1900 के आसपास है । किशोरी लाल लाल गोस्वामी की इंदुमती ' को प्रथम कहानी माना जाता है ।
2. प्रेमचंद काल की कहानी - 1910 से 1936 तक
हिंदी कहानी का विकास प्रेमचंद काल में हुआ । इस काल में ऐतिहासिक , सामाजिक , नैतिक , सांस्कृतिक , चारित्रिक आदि सभी विषयों पर कहानियां लिखी गई ।
3 . प्रेमचंदोत्तर कहानी - 1936 से 1950 तक
इस काल में कहानी का चतुर्दिक विकास हुआ । उसे नया रूप रंग प्राप्त हुआ । उस पर पश्चिमी प्रभाव भी पड़ा |
4 . नई कहानी - 1950 से आज तक
नई कहानी शब्द का प्रयोग सबसे पहले दिसंबर 1957 में संपन्न साहित्यकार सम्मेलन में किया गया । सन 1962 में कहानी के परिसंवाद में कहानी के नएपन पर चर्चा हुई । तभी से यह शब्द प्रचलित हो गया ।
प्रमुख कहानीकार और उनकी कहानी
1 प्रेमचंद - पंच परमेश्वर
2 जयशंकर प्रसाद - पुरस्कार, आकाशद्वीप
3. किशोरीलाल गोस्वामी - इन्दुमती { हिंदी की पहली कहानी }
4. चंद्रधर शर्मा गुलेरी - उसने कहा था
5. विशम्भर नाथ शर्मा कौशिक - ताई
6. मोहन राकेश - एक और जिंदगी
7. राजेन्द्र यादव - खेल खिलौने
8. मन्नू भण्डारी - सजा
9. आचार्य रामचंद्र शुक्ल - ग्यारह वर्ष का समय
10. गिरिजा दत्त बाजपेयी - पंडित और पंडितानी
11. माधवराव सप्रे - टोकरी भर मिट्टी
12. जैनेन्द्र कुमार - फांसी
13. यशपाल - ज्ञान दान
14. इलाचंद्र जोशी - आहुति
15. वृन्दावन लाल वर्मा - कलाकार का दंड
16. फणीश्वर नाथ रेणु - तीसरी कसमउपन्यास और कहानी में अंतर
1. उपन्यास का आकार बड़ा होता है जबकि कहानी का आकार छोटा होता है ।
2. उपन्यास में पात्रों की संख्या अधिक होती है जबकि कहानी में सीमित पात्र होते हैं ।
3. उपन्यास की कथावस्तु का आकार व्यापक होता है जबकि कहानी में कथावस्तु संक्षिप्त होती है ।
4. प्रेमचंद के अनुसार उपन्यास एक बगीचा है जबकि कहानी उस बगीचे का सौरभविका गुलदस्ता है ।
5. ' गोदान ' प्रेमचंद कृत एक उपन्यास है जबकि ' पंच परमेश्वर ' प्रेमचंद कृत एक कहानी है ।
नाटक और कहानी में अंतर
1. नाटक का आकार बड़ा होता है जबकि कहानी का आकार छोटा होता है ।
2. नाटक में पात्रों की संख्या अधिक होती है जबकि कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है ।
3. नाटक अनेक अंक वाली रंगमंच की विधा है जबकि कहानी में एक कथा होती है।
4. नाटक में संवाद की व्यापकता होती है जबकि कहानी में संवाद संक्षिप्त होते हैं ।
5. प्रसाद कृत ' चंद्रगुप्त ' एक नाटक है जबकि प्रसाद कृत ' पुरस्कार ' कहानी है ।
5. निबंध
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ' यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है । '
निबंध के तत्व :-
विषय वस्तु
उद्देश्य
भाषा शैली।
निबंध के मुख्यरूप से चार भेद है :-
1. भावात्मक निबंध :-
2. विचारात्मक निबंध :-
3. विवरणात्मक निबंध :-
4. वर्णात्मक निबंध :-
निबंध रचना की शैली के प्रकार :-
निबंध का विकास
1. भारतेंदु युग - 1850 से 1900 तक।
भारतेन्द्र युग की विशेषताएँ :-
इस युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनके निबंध
2. द्विवेदी युग - 1900 से 1920 तक।
द्विवेदी युग की विशेषताएँ :-
इस युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनके निबंध
3. शुक्ल युग - 1920 से 1940 तक
शुक्ल युग की विशेषताएँ -
इस युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनके निबंध
4. शुक्लोतर युग - 1940 से अब तक
शुक्लोतर युग की विशेषताएँ : -
इस युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनके निबंध
प्रमुख निबंधकार एवम उनकी रचनाएं:-
1. चंद्रधर शर्मा गुलेरी - कछुआ धर्म
2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल - चिंतामणि
3. विद्यानिवास मिश्र - तुम चंदन हम पानी
4. डॉ. नगेन्द्र - आलोचक की आस्था
5. हजारी प्रसाद द्विवेदी - अशोक के फूल
6. बाबू श्याम सुंदर दास - समाज और साहित्य
7. महावीर प्रसाद द्विवेदी - साहित्य की महत्ता
8. पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी - मेरे प्रिय निबंध
9. प्रताप नारायण मिश्र - परीक्षा
10. बालकृष्ण भट्ट - चंद्रोदय
11. भारतेंदु हरिश्चंद्र - एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न।
Inspirational thought
6 आलोचना
' आलोचना ' या ' समीक्षा ' विधा आधुनिक युग की देन है । आज यह गद्य की महत्वपूर्ण विधा बन गई है । ' आलोचना ' शब्द का शाब्दिक अर्थ है किसी वस्तु को भली प्रकार देखना । किसी साहित्यिक रचना को अच्छी तरह परीक्षण कर , उसके गुण दोषों को प्रकट करना ही आलोचना करना या समीक्षा करना कहलाता है ।
● आलोचना के रूप -
1 सैद्धांतिक आलोचना
2 व्यवहारिक आलोचना ।
• आलोचक और उनकी रचनाएं-
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल - रस मीमांसा, भ्रमरगीत सार ।
2. हजारी प्रसाद द्विवेदी - हिंदी साहित्य की भूमिका , हिंदी साहित्य का आदिकाल ।
3. डॉ. नगेन्द्र - रस सिद्धांत
4. नंद दुलारे वाजपेयी - नए साहित्य नए प्रश्न
गद्य की गौण विधाएं :-
1. आत्मकथा
आत्मकथा गद्य की विधा है , जिसमें तटस्थता के साथ लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा रसात्मक ढंग से लिखता है । आत्मकथा किसी व्यक्ति की स्व- लिखित जीवन गाथा है ।
आत्मकथा किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्वयं के जीवन का वर्णन या लेखन आत्मकथा कहलाती है ।
प्रमुख आत्मकथा लेखक और रचनाएं -
1. गुलाब राय - मेरी असफलताएं
2. महात्मा गांधी - सत्य के प्रयोग ।
3.भारतेन्दु हरिशचन्द्र - कुछ आप बीती कुछ जग बीती
4. राजेन्द्र प्रसाद - आत्मकथा
2. जीवनी
जीवनी में किसी महान व्यक्ति के जीवन का समग्र चित्रण इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व के सभी पक्ष उद्घाटित हो उठे । उसे जीवनी कहते हैं ।
जिस रचना में किसी महापुरुष के जीवन के क्रियाकलापों , गुण विशेष अथवा घटनाओं का कलात्मक रूप में व्यवस्थित वर्णन का प्रस्तुतिकरण किया जाए उसे जीवनी कहते हैं ।
प्रमुख जीवनी लेखक और रचनाएं
1. अमृतराय - कलम का सिपाही
2. राम विलास शर्मा - निराला की साहित्य साधना
3. शांति जोशी - पंत की जीवनी
4. विष्णु प्रभाकर - आवारा मसीहा
आत्मकथा और जीवनी में अंतर
1. आत्मकथा स्वयं के द्वारा लिखी जाती है जबकि जीवनी किसी महापुरुष के जीवन पर आधारित होती है ।
2. आत्मकथा काल्पनिक भी हो सकती है जबकि जीवनी सत्य घटनाओं पर आधारित होती है ।
3. आत्मकथा में लेखक स्वयं के गुण दोषों का विवेचन करता है जबकि जीवनी में दूसरे के गुण दोषों का विवेचन होता है ।
4. ' मेरी असफलताएं ' तथा ' मेरी जीवन गाथा आत्मकथाएं हैं जबकि ' कलम का सिपाही ' जीवनी है ।
3. संस्मरण
संस्मरण का तात्पर्य है सम्यक स्मरण अर्थात ' जब लेखक अनुभूत की गई घटनाओं का अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु का मार्मिक वर्णन अपनी स्मृति के आधार पर करता है , तो वह संस्मरण कहलाता है । '
जीवन की मर्मस्पर्शी यादों के आधार पर प्रभावशाली भाषा का लेखन ही संस्मरण कहलाता है ।संस्मरण लेखक और रचनाएं
1. महादेवी वर्मा - पथ के साथी
2. अमृतलाल नागर - जिनके साथ जिया
3. उपेन्द्रनाथ अश्क - मण्टों मेरा दुश्मन
4. रेखा चित्र
रेखा चित्र अंग्रेजी का ' स्केच ' शब्द है जिसका अर्थ है ' शब्द चित्र ' । जब हम किसी , घटना , व्यक्ति या वस्तु का शब्दों के माध्यम से ऐसा कलात्मक वर्णन करते हैं कि आंखों के सामने चित्र सा उपस्थित हो जाता है उसे रेखाचित्र कहते हैं ।
शब्दों की कलात्मक रेखाओं के द्वारा किसी व्यक्ति , वस्तु अथवा घटना के बाह्य तथा आंतरिक स्वरूप का सजीव तथा वास्तविक रूप में प्रस्तुतिकरण रेखाचित्र कहलाता है ।
रेखा चित्रकार और रचनाएं-
1. महादेवी वर्मा - अतीत के चलचित्र
2. रामवृक्ष बेनीपुरी - माटी की मूरतें ,मील के पत्थर
3. आचार्य विनय मोहन शर्मा - रेखाएँ और रंग
संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर :-
1. संस्मरण अभिधा मूलक होता है जबकि रेखाचित्र सांकेतिक तथा व्यंजक होता है ।
2. संस्मरण का संबंध प्रायः महापुरुष से होता है जबकि रेखा चित्र में सामान्य व्यक्ति भी संभव है ।
3. संस्मरण व्यक्ति के जीवन पर आधारित होता है जबकि रेखाचित्र का आधार पर्यवेक्षण , विचार तत्व तथा भावना और कल्पना होती है ।
4. संस्मरण व्यक्ति परक होता है जबकि रेखाचित्र में लेखक तटस्थ होता है ।
5. ' पथ के साथी ' तथा ' स्मृति कण ' संस्मरण के उदाहरण हैं जबकि अतीत के चलचित्र ' और ' माटी की मूरतें रेखाचित्र के उदाहरण हैं ।
5. यात्रा साहित्य
जब सौंदर्य बोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करता है , और उसकी मुक्त भाव से अभिव्यक्ति करता है उसे यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत कहते हैं ।
यात्रा वृतांत लेखक और रचनाएं-
1. रामधारी सिंह दिनकर - देश विदेश
2. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय-- अरे यायावर रहेगा याद |
6. रिपोर्ताज
रिपोर्ताज फ्रांसीसी शब्द ' रिपोर्ताज का अंग्रेजी के रिपोर्ट से गहरा संबंध है । रिपोर्ताज में सूचना के अतिरिक्त साहित्यिकता भी होती है । रिपोर्ताज का संबंध वर्तमान से होता है । यह सूचनात्मक होते हैं ।
किसी घटना के साहित्यिक वर्णन या विवरण को रिपोतार्ज कहा जाता है ।
विशेषताएँ : -
रिपोर्ताज लेखक और रचनाएं-
1. रांगेय राघव - तूफानों के बीच
2. शिवधान सिंह चौहान - लक्ष्मीपुरा
3. शिवसागर मिश्र - वे लडेंगे हजारो साल
4. धर्मवीर भारती - युद्ध यात्रा |
7. पत्र साहित्य
ऐसा साहित्य जिसमें किसी बड़े आदमी के लिखे हुए पत्रों का संग्रह हो । पत्र संग्रह में बेचन शर्मा द्वारा ' फाइल और प्रोफाइल , जीवन प्रकाश द्वारा संपादित ' बच्चन पत्रों में महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा श्रीधर पाठक जी के नाम पत्र साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियां हैं ।
पत्र साहित्य भी हिंदी गद्य की एक सशक्त विधा है। पत्र के द्वारा आत्म प्रदर्शन और विचारों श्रण की अभिव्यक्ति को अच्छी दिशा प्राप्त होती है । उर्दू में " गुबारे खातेह " ( आज़ाद का पत्र संग्रह | और रूसी भाषा में टॉलस्टॉय की डायरी स्थायी साहित्य साहित्य की निधि है ।8. डायरी
डायरी में लेखक अपनी शक्ति और दुर्बलता , क्रिया- प्रतिक्रिया , संपर्क संबंध , शत्रुता - मित्रता आदि का लेखा - जोखा तथा विश्लेषण भी करता है । यह लेखक की निजी वस्तु होती है । हिंदी में डायरी लेखन का आरंभधीरेंद्र वर्मा की मेरी कॉलेज डायरी नामक रचना से माना जाता है ।
9. भेंट वार्ता
किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से पूर्व में ही निर्धारित किसी विशिष्ट विषय पर कुछ प्रश्न किए जाते हैं और प्राप्त उत्तरों को लिपिबद्ध रूप में प्रस्तुत करना ही भेंटवार्ता कहलाता है । पदम सिंह शर्मा ' कमलेश और रणवीर रांगा ने वास्तविक भेंट वार्ताएं लिखी है ।
10. गद्य काव्य
यह गदय और पदय के बीच की विधा है । इसमें गदय के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है । इनमें विचारों की अपेक्षा भावों की प्रधानता होती है । गद्य काव्य का आरंभ राय कृष्णदास के ' साधना संग्रह ' से माना जाता है ।
11. इंटरव्यू या साक्षात्कार
इंटरव्यु या साक्षातकार वह रचना है जिसमें लेखक किसी व्यक्ति विशेष से साक्षातकार करके उसके संबंध में कतिपय जानकारियों को तथा उसके संबंध में अपनी क्रिया - प्रतिक्रियाओं को अपनी पूर्ण धारणाओं , आस्थाओं और संबंध में रुचियों का रंजत का सरस एवम भावपूर्ण शैली में व्यक्त करना है।
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आज हमने इस पोस्ट में गद्य साहित्य की सभी विधाओं को विस्तारपूर्वक जाना तथा प्रत्येक विधा के प्रमुख कवि व रचनाओं को बहुत ही सरल भाषा में जाना।
उम्मीद करता हूँ कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।
यदि आप गद्य साहित्य की सभी विधाओं से जुड़े कोई प्रश्न पूंछना या हमे कोई सुझाव देना चाहते है तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमे अपना सुझाव जरूर दे।
धन्यवाद।
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