रस की परिभाषा , रस के अंग एवम रस के विभिन्न प्रकार उदाहरण सहित (Ras ki paribhasha, Ras ke ang, evm Ras ke sabhi prakar udaharan sahit)
आज इस पोस्ट में हम रस की परिभाषा , रस के अंग , रस के विभिन्न प्रकारों एवम इसके विभिन्न उदाहरणों को विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
इस पोस्ट में हम पढ़ेंगे रस की 10 in one परिभाषा, रस के विभिन्न अंगों की परिभाषाएं, उनके प्रकार, स्थायी तौर एवम संचारी भाव में अंतर।
रस के विभिन्न प्रकार (श्रृंगार , वीर, हास्य,शांत आदि,) सभी की परिभाषाएं एवम बहुत उदाहरण।
हमारे इस ब्लॉग पर आपको ऐसी ही knowledgable पोस्ट (लेख) मिलते रहेंगे तो आप हमसे जुड़ सकते या तो हमें follow करके या नोटिफिकेशन बटन चालू करके जिसमें आपको हमारी नई पोस्ट का नोटिफिकेशन सबसे पहले मिले।
और आपके महत्वपूर्ण सुझाव कमेंट बॉक्स में दे।
धन्यवाद।।
👇👇👇👇👇👇👇
परिभाषा - किसी काव्य को पढ़ने,सुनने अथवा देखने में पाठक, श्रोता अथवा दर्शक को जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है।
रस का शाब्दिक अर्थ होता है - {आनंद या मजे की प्राप्ति} ।
रस की परिभाषा देखे यूट्यूब पर....यह परिभाषा जो नीचे दी गयी है यदि आपको याद है तो पूरे के पूरे दस रसों की परिभाषा आप बहुत ही आसानी से याद कर सकेंगे।। 👇👇👇👇
10 IN 1 DEFINITION👇👇
दूसरे शब्दों में "
जब किसी सह्रदय के ह्रदय में स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव एवम संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो रस की उत्पत्ति या निष्पत्ति या अभिव्यंजना होती है।"
रस के अंग-
रस के चार अंग होते हैं
स्थाई भाव
विभाव
अनुभाव एवं
संचारी भाव( व्यभिचारी भाव)
1.स्थाई भाव-
वे भाव जो किसी सहृदय के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं, स्थायी भाव कहलाते हैं। इनकी संख्या 10 है।
2. विभाव -
स्थायी भावों को जागृत करने वाले कारक को या कारकों को विभाव कहते हैं ।
विभाव दो प्रकार के होते हैं -
आलंबन विभाव और
उद्दीपन विभाव
a. आलंबन विभाव -
जिसके कारण सह्रदय के ह्रदय में भाव जागृत होते हैं,उसे आलंबन विभाव कहते हैं ।
आलंबन विभाव दो प्रकार के होते हैं -
आश्रय और
विषय
i. आश्रय - जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जागृत होते हैं उसे आश्रय कहते हैं।
ii. विषय -जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत होते हैं, उसे विषय कहते हैं।
b. उद्दीपन विभाव -
आलंबन विभाव द्वारा जागृत कारकों को और अधिक उद्दीप्त करने वाले या तेज करने वाले कारक को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
3. अनुभाव -
आश्रय की चेष्ष्ठाओं,हरकतों एवं क्रियाकलापों को ही अनुभाव कहते हैं।
अनुभाव दो प्रकार के होते है ।
साधारण अनुभाव - इनकी संख्या चार है। आंगिक,वाचिक,आहार्य एवम सात्विक।
सात्विक अनुभाव - इनकी संख्या आठ है।
स्तम्भ,स्वेद,रोमांच,स्वरभंग,वेपथु(कम्प),वैवरण्य, अश्रु और प्रलय।
4. संचारी भाव -
वे भाव जो सहृदय के हृदय में अस्थाई रूप से विद्यमान होते हैं संचारी भाव कहलाते हैं इनकी संख्या 33 है। इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहते हैं।
हर्ष , चिंता , गर्व , जड़ता , बिबोध , स्मृति , व्याधि , विषाद , शंका , उत्सुकता , आवेग , श्रम , मद , मरण ,त्रास , असूया , उग्रता , धृति , निंद्रा , अभिहित्था , ग्लानि , मोह , दीनता , मति , स्वप्न , अपस्मार , निर्वेद , आलस्य , उन्माद , लज्जा , अमर्ष , चफलता , दैन्य , सन्त्रास , औत्सुक्य , चित्रा एवम वितर्क।
रस के भेद (प्रकार) -
रस के 10 भेद होते हैं।
भरत मुनि ने नाटय शास्त्रों में रसों की संख्या 9 बताई है वात्सल्य को 10 वां एवं भक्ति को 11 वां रस माना है।
क्रमांक | रस का नाम | स्थायी भाव |
1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. | श्रृंगार रस करुण रस हास्य रस वीर रस रौद्र रस अद्भुत रस भयानक रस वीभत्स रस शांत रस और वात्सल्य रस | रति (प्रेम) शोक हास (हंसी) उत्साह क्रोध विस्मय (आश्चर्य) भय जुगुप्सा (घृणा) निर्वेद (वैराग्य) वत्सल (ममत्व) |
प्रश्न - स्थायी भाव एवम संचारी भाव में अंतर।
स्थायी भाव एवम संचारी भाव में निम्न अंतर है-
1. स्थाई भाव सह्रदय के हृदय में स्थाई रूप से विद्यमान होते हैं,
जबकि
संचारी भाव सहृदय के ह्रदय में अस्थाई रूप से विद्यमान होते हैं यह पानी के बुलबुलों की तरह क्षणिक होते हैं।
2. प्रत्येक रस का एक स्थाई भाव होता है,
जबकि
एक संचारी भाव एक से अनेक रसों में रह सकता है ।
3. स्थाई भाव रस की पूर्णावस्था है,
जबकि
संचारी भाव स्थाई भाव को पूर्ण करने में सहायक होते हैं ।
4. स्थाई भाव की संख्या 10 है,
जबकि
संचारी भावों की संख्या 33 है।
देखे स्थायी भाव एवम संचारी भाव में अंतर on यूट्यूब
1. श्रृंगार रस -
जब किसी सहृदय के हृदय में रति नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो श्रंगार रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
श्रृंगार रस को "रसों का राजा यानी कि रसराज " कहा जाता है । यह रसों में सर्वप्रथम स्थान रखता है ।
अर्थात जहां पर काव्य में मिलनसारिता या वियोग ,विरह का भाव प्रदर्शित होता है वहां पर श्रृंगार रस होता है।
श्रृंगार रस के दो भेद हैं -
संयोग श्रृंगार रस और
वियोग श्रृंगार रस ।
i) संयोग श्रृंगार रस-
जहाँ पर नायक और नायिका के मिलन या संयोग का वर्णन हो, वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है ।
उदाहरण-
1. राम को रूप निहारति जानकी
कंगन के नग की परछाई ।
या ते सब सुध भूल गई,
पल टेक रही पर टारत नाहिं।
2. बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय
सौंह करें भौहिनीं हंसे , देन करि नट जाए
3. कहत , नटत , रीझत , खीझत , मिलत , खिलत , लजियात।
भरै भौन में करत है , नैनन ही सों बाता।
ii) वियोग श्रंगार रस-
जहां पर नायक और नायिका के वियोग या विरह का वर्णन हो, वहां पर वियोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण-
1. हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी,
तुम देखी सीता मृगनयनी।
2. निसिदिन बरसत नयन हमारे,
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते श्याम सिधारे।।
यदि आपको श्रृंगार रस से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये।
2. करुण रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में शोक नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो करुण रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
अर्थात जहां पर काव्य में किसी हानि के कारण शोक , दुख आदि का भाव प्रदर्शित होता है वहां पर करुण रस होता है।
उदाहरण-
1. सोक विकल सब रोवहिं रानी,
रूप सीलु बनु तेज बखानी।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा,
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।।
2. अभी तो मुकुट ने माथ,
कल कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन-शून्य कपोल,
हाय रुक गया यहीं संसार,
बना सिन्दूर अनल अंगार ।
यदि आपको करुण रस से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये।
Like & follow our Facebook page 👈👈
3. हास्य रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में हास नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
अर्थात हास्य रस मनोरंजक रस है। जहां पर काव्य में ऐसा भाव प्रदर्शित हो जहां पर उसको पढ़ने से आपका मन प्रफुल्लित हो उठे या आप मनमुग्ध हो जाये तो वहां पर हास्य रस होता है।
उदाहरण-
1. फादर ने सिलवा दिए तीन को छः पेंट ,
बेटा मेरा बन गया कॉलेज स्टूडेंट ।
2. बंदर ने कहा बंदरिया से चलो नहाए गंगा ।
बच्चों को छोड़ेंगे घर में होने दो हुड़दंगा ।
3. तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट घंटा भर आलाप ।
घंटा भर आलाप राग में मारा गोता ,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ।
4. पत्नी खटिया पर पड़ी , व्याकुल घर के लोग।
व्याकुलता के कारण , समझ ना पाए रोग।
समझ न पाए रोग , तब एक वैद्य बुलाया।
इस को माता निकली है , उसने यह समझाया।
यह काका कविराय सुने , मेरे भाग्य विधाता।
हमने समझी थी पत्नी , यह तो निकली माता।
यदि आपको हास्य रस से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये।
Subscribe my youtube channel 👈👈
4. वीर रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में उत्साह नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वीर रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
अर्थात जहां पर विषय वर्णन में वीरता , उत्साहकरिता , तेज प्रताप के भाव का बोध हो तो वहां पर उत्साह रस होता है।
उदाहरण-
1. बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
2. वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं ।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं ।
यदि आपको वीर रस से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये।
5. रौद्र रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में क्रोध नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो रौद्र रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
जहां पर काव्य में क्रोध या गुस्सा के भाव का बोध हो ,तो वहां पर रौद्र रस होता है।
उदाहरण-
1. श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े ।
करते हुए घोषणा भी हो गए उठकर खड़े।
2. माखे लखन कुटिल भयीं भौंहें।
रद-पट फरकत नयन रिसौहैं।।
कहि न सकत रघुबीर डर, लगे वचन जनु बान।
नाइ राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरा प्रमान।
6. अद्भुत रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में विस्मय नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो अद्भुत रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
जहां पर काव्य के वर्णन में विस्मय या आश्चर्य का भाव प्रतीत होता है , वहां अद्भुत रस होता है।
उदाहरण-
1. सारी बीच नारी है,की नारी बीच सारी है।
सारी ही कि नारी है, की नारी ही कि सारी है।
2. बिनु पग चले,सुनै बिनु काना।
कर बिन करम, करै विधि नाना।
आनन रहित, सकल रस भोगी।
बिनु वाणी , वक्ता बड़ जोगी।
यदि आपको अद्भुत से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये।
7. भयानक रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में भय नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो भयानक रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
इस रस के अनुसार जब किसी बलवान व्यक्ति या भयानक वस्तु को देखकर भय का भाव उत्त्पन्न होता है,तो वहां भयानक रस होता है।
उदाहरण-
1. एक ओर अजगरहिं लखि,
एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच में,
परयो मूरछा खाय।
2. बालधी विशाल, विकराल, ज्वाला-जाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना परारी है।
3. कैदियों व्योम बीद्यिका भरे हैं भूरिम्पकेतु,
वीर रस वीर तरवरि सी उधारी।
8. वीभत्स रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में जुगुप्सा नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वीभत्स रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
जहां पर काव्य में घृणा या जुगुप्सा का भाव प्रतीत होता है वहां पर वीभत्स रस होता है ।
उदाहरण-
1. सिर पर बैठ्यो काग,
आंख दोउ खात निकारत।
मुंह में जिह्वा लार,
अति आनंद उर धारत।
2. जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै।
ता दिन में तनकै विष्ठा कृमि के ह्वैं खाक उड़ेहै।
9. शांत रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में निर्वेद नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो शांत रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
जहां पर काव्य वर्णन में ऐसा प्रतीत हो कि संसार में मन नही लग रहा या वैराग्य भाव को दिखाने वाला रस , शांत रस कहलाता है।
उदाहरण-
1. मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावै,
जैसे उड़ी जहाज को पंछी
फिरि जहाज पे आवै।
2. मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूंद बिनसि जाए छिन में,गरब करे क्या इतना।।
10. वात्सल्य रस-
जब किसी सहृदय के हृदय में वत्सल नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वात्सल्य रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
माता-पिता प्रेम , ममत्व (ममता) एवम संतान के प्रति प्रेम के भाव को प्रकट करने वाला रस , वात्सल्य रस कहलाता है।
उदाहरण-
1. मैया मोरी में नहिं माखन खायो।
2. किलकत कान्हा घुटुरवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आंगन बिम्ब पकरिए घावत।।
यदि आपको वात्सल्य रस से संबंधित कोई भी समस्या है तो आप यह वीडियो देखिए और अपने सारे confusion दूर कीजिये। 👇👇👇👇
From the Blog:
आज हमने इस पोस्ट में रस की परिभाषा , उसका शाब्दिक अर्थ , रस के विभिन्न अंगों की परिभाषाएं , रस के सभी प्रकारों की परिभाषायें एवम उनके बहुत सरल से उदाहरण।
उम्मीद करता हूँ कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।
यदि आप रस से जुड़े कोई प्रश्न पूंछना या हमे कोई सुझाव देना चाहते है तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमे अपना सुझाव जरूर दे।
धन्यवाद।
__________________________________________
आपको ये भी पढ़ना चाहिए।
YOU SHOULD ALSO WATCH THIS.
👇👇👇👇👇👇👇
Important Days of every month.
अप्रैल माह के सभी महत्वपूर्ण दिवस
__________________________________________
Related post to रस।
__________________________________________
🔘🔘 WATCH ON YOUTUBE 🔘🔘
⭕⭕ALSO LIKE & FOLLOW MY PAGE ⭕⭕
☑️☑️ BLOG POST ☑️☑️