रस के अंग कितने होते है। , परिभाषा , हिंदी व्याकरण

रस के अंग कितने होते है। रस के अंगों के नाम लिखिए।



रस के अंग-

 रस के चार अंग होते हैं 


  • स्थाई भाव 

  • विभाव 

  • अनुभाव एवं 

  • संचारी भाव( व्यभिचारी भाव)


1.स्थाई भाव

वे भाव जो किसी सहृदय के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं, स्थायी भाव कहलाते हैं।  इनकी संख्या 10 है।


 2. विभाव

स्थायी भावों को जागृत करने वाले कारक को या कारकों को विभाव कहते हैं ।


विभाव दो प्रकार के होते हैं - 

  • आलंबन विभाव और 

  • उद्दीपन विभाव


 a. आलंबन विभाव

जिसके कारण सह्रदय के ह्रदय में भाव जागृत होते हैं,उसे आलंबन विभाव कहते हैं ।

आलंबन विभाव दो प्रकार के होते हैं -

  •  आश्रय और

  • विषय 


i. आश्रय

जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जागृत होते हैं उसे आश्रय कहते हैं।

 ii. विषय -

 जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत होते हैं, उसे विषय कहते हैं।


 b. उद्दीपन विभाव -

आलंबन विभाव द्वारा जागृत कारकों को और अधिक उद्दीप्त करने वाले या तेज करने वाले कारक को उद्दीपन विभाव कहते हैं।


3. अनुभाव -

 आश्रय की चेष्ष्ठाओं,हरकतों एवं क्रियाकलापों को ही अनुभाव कहते हैं।


अनुभाव दो प्रकार के होते है ।

  •  साधारण अनुभाव - इनकी संख्या चार है।

              आंगिक,वाचिक,आहार्य एवम सात्विक।

  • सात्विक अनुभाव - इनकी संख्या आठ है

              स्तम्भ,स्वेद,रोमांच,स्वरभंग,वेपथु(कम्प)                        वैवरण्य, अश्रु और प्रलय।

4. संचारी भाव

वे भाव जो सहृदय के हृदय में अस्थाई रूप से विद्यमान होते हैं संचारी भाव कहलाते हैं इनकी संख्या 33 है। इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहते हैं।

हर्ष , चिंता , गर्व , जड़ता , बिबोध , स्मृति , व्याधि , विषाद , शंका , उत्सुकता , आवेग , श्रम , मद , मरण ,त्रास , असूया , उग्रता , धृति , निंद्रा , अभिहित्था , ग्लानि , मोह , दीनता , मति , स्वप्न , अपस्मार , निर्वेद , आलस्य , उन्माद , लज्जा , अमर्ष , चफलता , दैन्य , सन्त्रास , औत्सुक्य , चित्रा एवम वितर्क।




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रस की परिभाषा

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1 comment:

  1. मैं आपको इस रास के कितने अंग होते हैं पोस्ट को पढ़ने की सलाह देता हूं

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