विरोधाभास अलंकार किसे कहते है। विरोधाभास अलंकार की परिभाषा एवम उदाहरण । विरोधाभास अलंकार। हिंदी व्याकरण। अलंकार। विरोधाभासअलंकार क्या हैं।
विरोधाभास अलंकार की परिभाषा एवम उदहारण
(Virodhabhas alankar ki paribhasha evm udaharan)
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आज इस पोस्ट में हम विरोधाभास अलंकार की परिभाषा एवम इसके विभिन्न उदाहरणों को विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
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धन्यवाद।
विरोधाभास दो शब्दों से मिलकर बना है – विरोध + आभास ।
परिभाषा :- जहां वाक्य में वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास होता है , वहां विरोधाभास अलंकार होता है।
2. विरोधाभास अलंकार के अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।
3. जहां दो वस्तुओं में मूलतः विरोध ना होने पर भी विरोध के आभास का वर्णन किया जाए,वहां विरोधाभास अलंकार होता है।
4. जहां वाक्य में विरोध का आभास प्रकट होता है परंतु विरोध नहीं होता है वहां विरोधाभास अलंकार होता है।
5. जब वाक्य में विपरीत शब्दों के माध्यम से सार्थक बात कही जाए वहां विरोधाभास अलंकार होता है।
उदाहरण के तौर पर : "मोहब्बत एक मीठा ज़हर है।"
इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार की आवृति है।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण -
(1) या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय।
ज्यौं-ज्यों बूढ़ै स्याम रंग, त्यौ-त्यौ उज्जल होय।।
प्रस्तुत पंक्तियों में श्याम (सांवले) रंग में कोई चीज डूबने पर उज्ज्वल हो रही है जबकि साँवले रंग में डूबने से कोई चीज उज्ज्वल कैसे हो सकती है।लेकिन यहां साँवले रंग में डूबने से अर्थ श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबने से लगाया गया है।
(2) प्रिय मौन एक संगीत भरा।
संगीत के समय चारों ओर ध्वनि का विस्तार होता है किंतु यहां मौन रहकर संगीत का आभास कराना विरोधाभास अलंकार है।
(3) पत्थर कुछ और मुलायम हो गया है।
पत्थर की अवस्था कठोर की होती है अतः उसे मुलायम बताना विरोधाभास है।
(4) जल उठो फिर सींचने को।
जल के उठने की बात कही गई है जबकि जल की प्रकृति बहने की है।
(5) बन सुन्यायते मधुर, तबते सुनत न बैन।
(6) अवध को अपनाकार त्याग से, वन तपोवन सा प्रभु ने किया।
भरत ने उनके अनुराग से, भवन में वन का व्रत ले लिया।।’’
प्रस्तुत पद में राम के द्वारा वन को तपोवन सा बनाना एवं भरत के द्वारा राजभवन में ही वन का व्रत ले लेना विरोध का सा आभास कराता है।
(7) ’’तंत्री नाद कवित्त रस, सरस राग रति रंग।
अनबूङे बूङे तिरे, जे बूङे सब अंग।।’’
तंत्री के नाद में जो व्यक्ति नहीं डूबा व डूब गया और जो इसमें डूब गया वह तिर गया, यह विरोधाभास का कथन प्रतीत होता है।
(8) विषमयी गोदावरी अमृतन को फल देत।
कासव जीवन को, अस दुख हर्ट..''
(9) ''राजगट पर पुल बँधत, पिया के साथ।
आज कल कल्किके, आज ही नाथ नाथ।।''
(10) ''शीतल ज्वाला जलती है, परिलंधन दृग जल का।
यह चलने-फिरने, काम करने का काम करता है।।''
(11) ''धनी धुलाई भादों माहा।
अबुँ आए सींचने नाहा..''
(12) ''अचल हो रहे हैं चंचल, चपल बन अविचल।
पेस्टल पते पाहन दल, कुलशिश भी हो कोमला।।''
(13) ''सुगंधी अवध की आग वहाँ जल से ताग स्थिर।''
''कट बेकेक चलाइयत, चतुराई की चाल। सब देत रावरे, सब गुन बीन गण माल।।''
(14) कुकभरी भूकता बुलाय आप बोलिहै।
(15) उससे हारी होड़ लगाई।
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