संदेह अलंकार किसे कहते है। सन्देह अलंकार की परिभाषा एवम उदाहरण । संदेह अलंकार। हिंदी व्याकरण। अलंकार। संदेह अलंकार क्या हैं।

संदेह अलंकार एवम उसके उदाहरण (Sandeh Alankar evm uske udaharan)

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आज इस पोस्ट में हम संदेह अलंकार की परिभाषा एवम इसके विभिन्न उदाहरणों को विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।

और आपके महत्वपूर्ण सुझाव कमेंट बॉक्स में दे।


धन्यवाद।


परिभाषा :- 

जहाँ रूप, रंग या गुण की समानता के कारण किसी वस्तु को देखकर यह निश्चित न हो कि वही वस्तु हैऔर यह संदेह अंत तक बना रहता है, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।

2. जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब संदेह अलंकार होता है।


3. जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है।


4. जब उपमेय में उपमान का संशय हो तब संदेह अलंकार होता है। 


5. जहां प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपूर्ण वर्णन हो वहां संदेह अलंकार होता है।


6. जहां उपमेय और उपमान में रूप,रंग आदि के साभ्य के कारण समानता हो,इस साम्य के कारण संशयपूर्ण वर्णन हो,वहां संदेह अलंकार होता है।


7. जब उपमेय में उपमान के संशय का आभास हो , अर्थात किसी वस्तु को देखकर निश्चय ना हो पाना , तब संदेह अलंकार होता है ।


संदेह अलङ्कार के उदाहरण :- 


(1)  सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है ।

      कि सारी है की नारी है, कि नारी है की सारी है ।


स्पष्टीकरण – नारी के बीच साड़ी है या साड़ी के बीच नारी है इसका निश्चय नहीं हो रहा। अतः यहाँ पर संदेह बना हुआ है इसीलिए यहाँ संदेह अलंकार है।



(2) मद भरे ये नलिन नयन मलीन हैं ।

     अल्प जल में या विकल लघु मीन हैं।॥


स्पष्टीकरण – यहाँ उपमेय नयन और उपमान मीन है परन्तु यह निश्चय नहीं हो पा रहा कि ये नयन है अथवा मीन हैं।


(3)  इतित पूर्णेन्दु वह अधीवा और

      कामिनी के बदन की बिठली हटा रहा है।


(4) वह पूर्ण चन्द्रमा या किसी सुंदरी का मुखड़ा।


(5) कहूँ मानवी यदि

     कहू दयनीय...

     


(6) वन देवी समझ में आने के लिए।


(7) विरह है वरदान वरदान।



 (8) यह काया है या शेष उसी की छाया,

क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।



(9)  कहूँ मानवी यदि मैं तुमको तो ऐसा संकोच कहाँ?

     कहूँ दानवी तो उसमें है यह लावण्य की लोच कहाँ?

     वन देवी समझूँ तो वह तो होती है भोली-भाली।।


(10)  कहहिं सप्रेम एक-एक पाहीं। 

     राम-लखन सखि होहिं की नाहीं।।


(11)  यह मुख है या चंद्र है।



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