हास्य रस किसे कहते है। हास्य रस की परिभाषा । रस , अर्थ , परिभाषा ,अंग , भेद या प्रकार , समस्त रसों की परिभाषाएं एवम हिंदी व्याकरण
3. हास्य रस- जब किसी सहृदय के हृदय में हास नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
अर्थात हास्य रस मनोरंजक रस है। जहां पर काव्य में ऐसा भाव प्रदर्शित हो जहां पर उसको पढ़ने से आपका मन प्रफुल्लित हो उठे या आप मनमुग्ध हो जाये तो वहां पर हास्य रस होता है।
उदाहरण-
1.. फादर ने सिलवा दिए तीन को छः पेंट ,
बेटा मेरा बन गया कॉलेज स्टूडेंट ।
2. बंदर ने कहा बंदरिया से चलो नहाए गंगा ।
बच्चों को छोड़ेंगे घर में होने दो हुड़दंगा ।
3. तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट घंटा भर आलाप ।
घंटा भर आलाप राग में मारा गोता ,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ।
4. पत्नी खटिया पर पड़ी , व्याकुल घर के लोग।
व्याकुलता के कारण , समझ ना पाए रोग।
समझ न पाए रोग , तब एक वैद्य बुलाया।
इस को माता निकली है , उसने यह समझाया।
यह काका कविराय सुने , मेरे भाग्य विधाता।
हमने समझी थी पत्नी , यह तो निकली माता।
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Shandaar..
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