करुण रस किसे कहते है | करुण रस की परिभाषा। रस, अर्थ , परिभाषा ,अंग , भेद या प्रकार , हिंदी व्याकरण।
2. करुण रस- जब किसी सहृदय के हृदय में शोक नामक स्थायी भाव का विभाव,अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो करुण रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
अर्थात जहां पर काव्य में किसी हानि के कारण शोक , दुख आदि का भाव प्रदर्शित होता है वहां पर करुण रस होता है।
उदाहरण-
1.. सोक विकल सब रोवहिं रानी,
रूप सीलु बनु तेज बखानी।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा,
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।।
2. अभी तो मुकुट ने माथ,
कल कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन-शून्य कपोल,
हाय रुक गया यहीं संसार,
बना सिन्दूर अनल अंगार ।
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