शतरंज के खिलाड़ी – कहानी समीक्षा (मुंशी प्रेमचंद)
1. भूमिका / Introduction
“शतरंज के खिलाड़ी” प्रेमचंद की ऐतिहासिक–सामाजिक दृष्टि को प्रस्तुत करने वाली एक महत्वपूर्ण कहानी है। यह केवल दो नवाबी मित्रों की शतरंज खेलने की आदत की कथा नहीं, बल्कि 1856–57 के राजनीतिक परिदृश्य, अंग्रेजों की कूटनीति और भारतीय समाज की निष्क्रियता का गहरा प्रतीकात्मक चित्रण है। कहानी मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक–ऐतिहासिक चेतना भी जगाती है।
2. कथानक (Plot)
कहानी का केंद्र लखनऊ के दो अमीर नवाब—मीर साहब और मिर्ज़ा साहब—हैं जो शतरंज खेलने के ऐसे दीवाने हैं कि
घर-परिवार, समाज और राज्य की स्थितियाँ भी उन्हें रोक नहीं
पातीं।
जब अंग्रेज़ अवध पर कब्ज़ा जमाने की चालें चल रहे हैं और समाज में
हलचल बढ़ रही है, तब भी ये दोनों मित्र वास्तविक जीवन से आँख
चुराकर शतरंज की बिसात में डूबे रहते हैं।
कथा उस स्थिति तक पहुँचती है जहाँ परिस्थितियों से बचने के लिए वे
शहर से बाहर एक वीरान घर में जाकर भी शतरंज खेलने लगते हैं। वहीं एक तुच्छ से
विवाद में उनकी दोस्ती में दरार आती है और अंत में वे खेल के लिए अपनी जीवन-मरण की
बाज़ी तक लगाने को तैयार हो जाते हैं।
कहानी का अंत उन दोनों की मानसिक हार को दर्शाता है—जहाँ जीवन के
वास्तविक संघर्षों से भागना कहीं बड़ी पराजय सिद्ध होती है।
3. पात्र-चित्रण (Characters)
1. मीर साहब
भोग-विलास में डूबा, शतरंज का मूर्धन्य खिलाड़ी, आलसी और वास्तविक परिस्थितियों से कटे हुए व्यक्ति।
2. मिर्ज़ा साहब
मीर साहब की तरह ही खेल में डूबे हुए, लेकिन थोड़ा अधिक जागरूक और भावुक। दोनों की मित्रता, प्रतिस्पर्धा और कमजोरी कहानी का मूल बनती है।
3. रानियाँ / पत्नियाँ
दोनों नवाबों की पत्नियाँ उपेक्षित और दुखी जीवन जीती हैं। वे नवाबों की शतरंजी दीवानगी से परेशान हैं, लेकिन उनका विरोध भी सीमित है।
4. अंग्रेज़ अधिकारी
यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से कम उपस्थित हैं, मगर उनकी राजनीतिक चालें कथा की पृष्ठभूमि को दिशा देती हैं।
4. संवाद (Dialogue)
कहानी के संवाद बेहद स्वाभाविक, व्यंग्यात्मक और यथार्थवादी हैं। नवाबों की भाषा में
- नज़ाकत,
- तंज,
- और शाही
अकड़
का सुंदर मिश्रण दिखता है।
संवादों के माध्यम से प्रेमचंद शतरंज के प्रति उनकी दीवानगी और वास्तविक दुनिया से कटाव को अत्यंत प्रभावशाली तरीके से व्यक्त करते हैं।
5. वातावरण / परिवेश (Setting & Atmosphere)
लखनऊ की नवाबी संस्कृति—
- तहज़ीब,
- ऐशो-आराम,
- संगीत,
- ताश,
- और शतरंज की
महफ़िलों—
का बहुत ही सजीव वर्णन मिलता है।
साथ ही 1856–57 के राजनीतिक उथल-पुथल का तीखा विरोधाभास इस वातावरण में दिखाई देता है, जिससे कहानी में गहराई और ऐतिहासिक आयाम जुड़ता है।
6. भाषा और शैली (Language & Style)
प्रेमचंद की भाषा अत्यंत सहज, व्यंग्यपूर्ण, संस्कारित और भावप्रधान है।
- सूक्ष्म हास्य,
- समाज-व्यंग्य,
- नवाबी जीवन पर कटाक्ष,
- और राजनीतिक
चेतावनी
इन सबका संतुलित उपयोग उनकी शैली को विशिष्ट बनाता है।
7. उद्देश्य / संदेश (Theme & Purpose)
कहानी का मुख्य संदेश है—
जब समाज वास्तविक संकटों से मुँह मोड़ लेता है और सुविधा के नशे
में डूब जाता है, तब उसका पतन निश्चित है।
“शतरंज” यहाँ महज़ खेल नहीं बल्कि निष्क्रियता, पलायनवाद और मानसिक गुलामी का प्रतीक है।
प्रेमचंद इतिहास से चेतावनी देते हैं कि राष्ट्र की उदासीनता का
फायदा बाहरी शक्तियाँ अवश्य उठाती हैं।
8. कहानी के मजबूत पहलू (Strengths)
1. ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तिगत जीवन का बेहतरीन मेल।
2. दमदार व्यंग्य और गहरा प्रतीकवाद।
3. पात्रों की मनोवैज्ञानिक गहराई।
4. भाषा का सौंदर्य और लखनऊ की तहज़ीब का जीवंत चित्रण।
5. कहानी की प्रासंगिकता—आज भी उतनी ही सार्थक।
9. कहानी के कमजोर पहलू (Weaknesses)
1. जिन पाठकों को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ज्ञात न हो, वे गहन संदेश को तुरंत न समझ पाएँ।
2. राजनीति की जटिलता का अप्रत्यक्ष रूप कुछ पाठकों के लिए भ्रमपूर्ण हो सकता है।
10. व्यक्तिगत प्रतिक्रिया (Personal Response)
यह कहानी मुझे अत्यंत सशक्त लगी। इसमें प्रेमचंद का व्यंग्य चुभता भी है और
मुस्कुराता भी है।
कहानी पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगता है कि नवाबों का यह खेल केवल उनकी
जिंदगी नहीं, बल्कि पूरे राज्य की स्थिति का आईना है।
यह कहानी आज के समय की सामाजिक उदासीनता पर भी उतनी ही गहरी चोट
करती है।
11. सिफ़ारिश (Recommendation)
मैं इस कहानी को—
- साहित्य प्रेमियों,
- छात्रों,
- इतिहास पढ़ने वालों,
- और सामाजिक
अध्ययन में रुचि रखने वालों—
सबको पढ़ने की सलाह दूँगा।
यह कहानी सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि देश, समाज और जिम्मेदारी के बारे में सोचने की प्रेरणा देती है।
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BY :- SSR