समास की परिभाषा एवम इसके प्रकार उदाहरण सहित। समास किसे कहते है ? समास क्या है? तत्पुरुष समास , अव्ययी भाव समास , द्विगु समास , कर्मधारय समास , द्वन्द्व समास ,एवम बहुव्रीहि समास। Smas Kya hai? Smas kise kahte hai? Hindi Grammar. हिंदी व्याकरण । कर्मधारय एवम बहुव्रीहि समास में अंतर। कर्मधारय एवम द्विगु समास में अंतर । द्विगु एवम बहुव्रीहि समास में अंतर। तत्पुरुष समास एवम उसके प्रकार । अव्ययीभाव समास की परिभाषा । द्विगु समास की परिभाषा । द्वन्द समास की परिभाषा । कर्मधारय समास की परिभाषा । समास की परिभाषा उदाहरण सहित।
समास एवम उसके प्रकार (Smas evm Prakar)
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आज इस पोस्ट में हम समास की परिभाषा , समास के सभी प्रकार एवम इसके विभिन्न उदाहरणों को विस्तार पूर्वक जानेंगे जो कि आपकी बोर्ड परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है एवम किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे तो आप पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
और आपके महत्वपूर्ण सुझाव कमेंट बॉक्स में दे।
धन्यवाद।
समास शब्द दो शब्दों ' सम् ' ( संक्षिप्त ) एवं ' आस ' ( कथन / शब्द ) के मेल से बना है जिसका अर्थ है - संक्षिप्त कथन या शब्द । समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है ।
परिभाषा - दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं।
★ समस्त पद / सामासिक पद : समास के नियमों से बना शब्द समस्त पद या सामासिक शब्द कहलाता है ।
समास विग्रह : समस्त पद के सभी पदों को अलग - अलग किए जाने की प्रक्रिया समास विग्रह या व्यास कहलाती है ।
जैसे- ' नील कमल ' का विग्रह ' नीला है जो कमल ' तथा ' चौराहा ' का विग्रह है- चार राहों का समूह ।
समास रचना में प्रायः दो पद होते हैं । पहले को पूर्वपद और दूसरे को उत्तरपद कहते हैं , जैसे - ' राजपुत्र ' में पूर्वपद ' राज ' है और उत्तरपद ' पुत्र ' है । समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियौं लुप्त हो जाती हैं , जैसे- राजा का पुत्र राजपुत्र । यहाँ ' का ' विभक्ति लुप्त हो गई है । इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है , जैसे काठ की पुतली = कठपुतली ( काठ के ' का ' का ' क ' बन जाना ) ; घोड़े का सवार घुड़सवार ( घोड़े के ' घो ' का ' घु बन जाना ) ।
समास के भेद -
समास के छह मुख्य भेद हैं -
1. अव्ययीभाव समास ( Adverbial Compound ) 2. तत्पुरुष समास ( Determinative Compound ) 3. कर्मधारय समास ( Appositional Compound ) 4. द्विगु समास ( Numeral Compound )
5. द्वंद्व समास ( Copulative Compound )
6. बहुव्रीहि समास ( Attributive Compound )
पदों की प्रधानता आधार पर वर्गीकरण
पूर्वपद प्रधान - अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान - तत्पुरुष , कर्मधारय , व द्विगु
दोनों पद प्रधान - द्वंद्व
दोनों पद अप्रधान - बहुव्रीहि ( इसमें कोई तीसरा पद प्रधान होता है।)
1. अव्ययीभाव समास - जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो , उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
पहचान - पहला पद अनु, आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर, आदि होता है।
जैसे -
क्र. | पूर्वपद (अव्यय) + उत्तरपद | = | समस्त - पद | विग्रह |
1. | प्रति + दिन | = | प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
2. | आ + जन्म | = | आजन्म | जन्म से लेकर |
3. | यथा + संभव | = | यथासंभव | जैसा संभव हो |
4. | अनु + रूप | = | अनुरूप | रूप के योग्य |
5. | भर + पेट | = | भरपेट | पेट भर के |
6. | प्रति + कूल | = | प्रतिकूल | इच्छा के विरूद्ध |
7. | हाथ + हाथ | = | हांथो-हाथ | हाथ ही हाथ में |
2. तत्पुरुष समास - जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच कारक चिन्ह लुप्त हो जाता है , उसे तत्पुरुष समास कहते है।
अथवा
तत्पुरुष समास वह होता है, जिसमें उत्तरपद प्रधान होता है, अर्थात प्रथम पद गौण होता है एवं उत्तर पद की प्रधानता होती है व समास करते वक़्त बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है।
इस समास में आने वाले कारक चिन्हों को, से, के लिए, से, का/के/की, में, पर आदि का लोप होता है।
जैसे-
राजा का कुमार - राजकुमार
धर्म का ग्रंथ - धर्मग्रंथ
रचना को करने वाला - रचनाकार
तत्पुरुष समास के भेद :- विभक्तियों के नामों के अनुसार छह भेद है।
i) कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष) :- इसमें कर्म कारक की विभक्ति "को" का लोप हो जाता है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | गगन को चूमने वाला | गगनचुंबी |
2. | यश को प्राप्त | यशप्राप्त |
3. | चिड़ियों को मारने वाला | चिड़ीमार |
4. | ग्राम को गया हुआ | ग्रामगत |
5. | रथ को चलाने वाला | रथचालक |
6. | जेब को कतरने वाला | जेबकत |
ii) करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष) :- इसमें करण कारक की विभक्ति "से" , "के द्वारा" का लोप हो जाता है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | करुणा के पूर्ण | करुणापूर्ण |
2. | भय से आकुल | यशप्राप्त |
3. | रेखा से अंकित | रेखांकित |
4. | शोक से ग्रस्त | शोकग्रस्त |
5. | मद से अंधा | मदान्ध |
6. | मन से चाहा | मनचाहा |
7. | पद से दलित | पददलित |
8. | सूर के द्वारा रचित | सूररचित |
iii) सम्प्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष) :- इसमें सम्प्रदान कारक की विभक्ति "के लिए" का लोप हो जाता है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | प्रयोग के लिए शाला | प्रयोगशाला |
2. | स्नान के लिए घर | स्नानागार |
3. | यज्ञ के लिए शाला | यज्ञशाला |
4. | गौ के लिये शाला | गौशाला |
5. | देश के लिए भक्ति | देशभक्ति |
6. | डाक के लिए गाड़ी | डाकगाड़ी |
7. | परीक्षा के लिए भवन | परीक्षा भवन |
8. | हाथ के लिए कड़ी | हथकड़ी |
iv) अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष) :- इसमें अपादान कारक की विभक्ति "से" (अलग होने का भाव ) का लोप हो जाता है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | धन से हीन | धनहीन |
2. | पथ से भृष्ट | पथभ्रष्ट |
3. | पद से च्युत | पदच्युत |
4. | देश से निकाला | देशनिकाला |
5. | ऋण से मुक्त | ऋणमुक्त |
6. | गुण से हीन | गुणहीन |
7. | पाप से मुक्त | पापमुक्त |
8. | जल से हीन | जलहीन |
v) संबंध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष) :- इसमें संबंध कारक की विभक्ति "का" , "की" ,"के" लुप्त हो जाती है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | राजा का पुत्र | राजपुत्र |
2. | राजा की आज्ञा | राजाज्ञा |
3. | पर के अधीन | पराधीन |
4. | राजा का कुमार | राजकुमार |
5. | देश की रक्षा | देशरक्षा |
6. | शिव का आलय | शिवालय |
7. | ग्रह का स्वामी | गृहस्वामी |
8. | विद्या का सागर | विद्यासागर |
vi) अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष) :- इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति "में" , "पर" लुप्त हो जाती है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | शोक में मग्न | शोकमग्न |
2. | पुरुषों में उत्तन | पुरुषोत्तम |
3. | आप पर बीती | आपबीती |
4. | गृह में प्रवेश | गृहप्रवेश |
5. | लोक में प्रिय | लोकप्रिय |
6. | धर्म में वीर | धर्मवीर |
7. | कला में श्रेष्ठ | कलाश्रेष्ठ |
8. | आनंद में मग्न | आनंदमग्न |
नोट:- तत्पुरुष समास के उपर्युक्त भेदों अलावा कुछ अन्य भेद भी है, जिनमें प्रमुख है नञ् समास।
नञ् समास - जिस समास के पूर्वपद में निषेध सूचक / नकारात्मक शब्द ( अ, अन, न, ना, गैर आदि) लगे हों; जैसे -
अधर्म - न धर्म
अनिष्ट - न इष्ट
अनावश्यक - न आवश्यक
नापसंद - न पसन्द
अयोग्य - न योग्य
गैरवाजिब - न वाजिब आदि।
3. कर्मधारय समास - जिस समास का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान - उपमेय अथवा विशेषण - विशेष्य संबंध हो , कर्मधारय समास कहलाता है।
पहचान - विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में "है जो", "के समान" आदि शब्द आते है।
जैसे:-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | कमल के समान चरण | चरणकमल |
2. | कनक की-सी लता | कनकलता |
3. | कमल के समान चयन | कमलनयन |
4. | प्राणों के समान प्रिय | प्राणप्रिय |
5. | चंद्र के समान मुख | चंद्रमुख |
6. | मृग के समान नयन | मृगनयन |
7. | देह रूपी लता | देहालता |
8. | क्रोध रूपी अग्नि | क्रोधाग्नि |
9. | लाल है जो मणि | लालमणि |
10. | नीला है जो कण्ठ | नीलकंठ |
11. | महान है जो पुरुष | महापुरुष |
12. | महान है जो देव | महादेव |
13. | आधा है जो मरा | अधमरा |
4. द्विगु समास :- जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाची विशेषण हो, वहां द्विगु समास होता है।
इसमें हमें समूह का पता चलता है।
जैसे:-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | सात सिन्धुओं का समूह | सप्तसिंधु |
2. | दो पहरों का समूह | दोपहर |
3. | तीन लोकों का समूह | त्रिलोक |
4. | चार रास्तों के समूह | चौराहा |
5. | नौ रात्रियों का समूह | नवरात्र |
6. | सात ऋषियों का समूह | सप्तर्षि/सप्तऋषि |
7. | पाँच मढिंयों का समूह | पंचमढ़ी |
8. | सात दिनों का समूह | सप्ताह |
9. | तीन कोणों का समूह | त्रिकोण |
5. द्वंद्व समास :- जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान तथा विग्रह करने पर "और", "अथवा", "या", "एवं" लगता हो , वहां द्वंद्व समास होता है।
पहचान :- दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिन्ह {Hyphen} (-) का प्रयोग होता है।
जैसे :-
क्र. | विग्रह | समस्त - पद |
1. | नदी और नाले | नदी-नाले |
2. | पाप और पुण्य | पाप-पुण्य |
3. | सुख और दुःख | सुख-दुःख |
4. | गुण और दोष | गुण-दोष |
5. | देश और विदेश | देश-विदेश |
6. | ऊंच या नीच | ऊंच-नीच |
7. | आगे और पीछे | आगे-पीछे |
8. | राजा और प्रजा | राजा-प्रजा |
9. | नर और नारी | नर-नारी |
10. | खरा या खोटा | खरा-खोटा |
11. | राधा और कृष्ण | राधा-कृष्ण |
12. | ठंडा या गरम | ठंडा-गरम |
13. | छल और कपट | छल-कपट |
14. | अपना और पराया | अपना-पराया |
6. बहुव्रीहि समास:- जिस समस्त - पद में कोई पद प्रधान नहीं होता , दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुब्रीहि समास होता है।
जैसे :- 'विषधर', विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प। यहां पर दोनों पदों ने मिलकर एक तीसरे पद 'सर्प' का संकेत किया, इसीलिय यह बहुव्रीहि समास है।
क्र. | समस्त - पद | विग्रह |
1. | लंबोदर | लंबा है उदर जिसका (गणेश) |
2. | दशानन | दस है आनन जिसके (रावण) |
3. | चक्रपाणि | चक्र है पाणी में जिसके (विष्णु) |
4. | महावीर | महान वीर है जो (हनुमान) |
5. | चतुर्भुज | चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
6. | प्रधानमंत्री | मंत्रियों में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री) |
7. | पंकज | कीचड़ (पंक) में पैदा हो जो (कमल) |
8. | अनहोनी | न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना) |
9. | गिरिधर | गिरी को धारण करने वाला है जो (कृष्ण) |
10. | पीताम्बर | पीत(पीला) है अम्बर जिसका (कृष्ण) |
11. | निशाचर | निशा(रात) में विचरण करने वाला (राक्षस) |
12. | चौलड़ी | चार है लड़ियाँ जिसमें (माला) |
13. | त्रिलोचन | तीन है लोचन (नेत्र) जिसके (शिव) |
14. | चंद्रमौली | चंद्र है मौलि (सिर) पर जिसके (शिव) |
15. | नीलकंठ | नीला है कण्ठ जिसका (शिव) |
16. | मृगेंद्र | मृगों का इंद्र (सिंह) |
17. | घनश्याम | घन के समान श्याम है जो (कृष्ण) |
18. | मृत्युंजय | मृत्यु को जीतने वाला ( शिव) |
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास मे अंतर:-
(a) कर्मधारय समास का पहला या दूसरा खंड विशेषण या विशेष्य अथवा दोनों होता है। जबकि बहुव्रीहि समास में दोनों खंडों में परस्पर विशेषण-विशेष्य का भाव नहीं होता।
(b) इसमें उत्तर पद की प्रधानता होती है। जबकि इसका अन्य तीसरा पद प्रधान होता है।
(c) इसका विग्रह पदात्मक होता है। जबकि बहुव्रीहि समास का विग्रह वाक्यात्मक होता है।
(d) नीलकंठ – नीला है जो कंठ - कर्मधारय समास । जबकि नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव - बहुव्रीहि समास ।
(e) लंबोदर – मोटे पेट वाला कर्मधारय समास । जबकि लंबोदर – लंबा है उदर जिसका अर्थात् गणेश - बहुव्रीहि - समास ।
द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर:-
द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।
जैसे:-
नीचे दिए गए उदाहरणों से आप इन दोनों समास में अंतर समझ सकते है।
1. चतुर्मुख - चार मुखों का समूह - द्विगु समास जबकि
चार मुख हैं जिसके (ब्रह्मा) - बहुब्रीहि समास
2. दशानन - दस मुखों का समूह - द्विगु समास जबकि
दस हैं आनन जिसके (रावण) - बहुब्रीहि समास
3. चौमास - चार मासों (महीनों) का समूह - द्विगु समास जबकि चार मासों का है जो (वर्षा ऋतु) - बहुब्रीहि समास
4. त्रिलोचन - तीन लोचनों का समूह - द्विगु समास जबकि तीन हैं लोचन जिसके (शिव) - बहुब्रीहि समास
5. बारहसिंगा - बारह सींगो का समूह - द्विगु समास जबकि बारह सींगो वाला (एक जानवर) - बहुब्रीहि समास
6. चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह - द्विगु समास जबकि चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात् विष्णु - बहुव्रीहि समास ।
7. पंचवटी- पाँच वटों का समाहार - द्विगु समास जबकि पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात् दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया - बहुव्रीहि समास ।
8. दशानन — दस आननों का समूह - द्विगु समास जबकि दस आनन हैं जिसके अर्थात् रावण - बहुव्रीहि समास ।
द्विगु और कर्मधारय में अंतर:-
( i ) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है ।
( ii ) द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है ।
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